पीएनबी की उत्पत्ति

 
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पीएनबी की उत्पत्ति

पंजाब का अंग्रेजों के अधीन तेजी से विकास हुआ और वर्ष 1849 में इसे साम्राज्या में मिला लिए जाने के बाद इसके विकास में और तेजी आई। इसके परिणाम स्वरुप एक नया शिक्षित वर्ग उत्पकन्न हुआ जिसमें गुलामी की जंजीरे तोड़कर स्वतंत्र होने की इच्छां थी । इस नवोदित वर्ग में यह इच्छाि भी पनप रही थी कि भारतीय पूंजी और ऐसे प्रबन्ध न से एक स्वंदेशी बैंक की स्था्पना की जाए जो भारतीय समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व् करता हो । सर्वप्रथम यह‍ विचार आर्य समाज के राय मूल राज जी को आया और जैसा कि लाला लाजपतराय ने बताया था कि उनके मन में यह इच्छाी बहुत समय से थी कि भारतीयों का अपना राष्ट्रीय बैंक होना चाहिए। वे महसूस कर रहे थे कि ‘’भारतीय पूंजी का इस्तेेमाल अंग्रेजी बैंकों और कंपनियों को चलाने में किया जा रहा था जिनसे होने वाला मुनाफा पूर्णत: अंग्रेजों को पहुंच रहा था और भारतीयों को अपनी पूंजी पर मिलने वाले थोड़े से ब्याज से ही संतुष्टर होना पड़ रहा था ।’’

राय मूल राज जी के कहने पर लाला लाजपतराय जी ने अपने कुछ चुनिंदा मित्रों को एक परिपत्र प्रेषित करके सही मायनों में स्वदेशी अभियान के पहले विशेष रचनात्म्क उपाय के रुप में एक भारतीय ज्वाहईंट स्टॉवक बैंक बनाए जाने का आग्रह किया। इंग्लैंड से लौटे लाला हरकृष्ण लाल जी को वाणिज्य और उद्योग की जानकारी थी जिसे वे मूर्त्त रुप देना चाहते थे।

इस बैंक का जन्म 19 मई, 1894 को हुआ। बैंक के संस्थािपक बोर्ड की स्थापपना में भारत के अलग-अलग हिस्सों से विभिन्न धर्मों और पृष्ठो भूमि के व्यक्तियों को शामिल किया गया जिनका एकमात्र उद्देश्यं ऐसे बैंक की स्थापना करना था जो राष्ट्र के आर्थिक हितों को और आगे बढ़ाने वाला हो।

यह बैंक कारोबार हेतु 12 अप्रैल, 1895 को खुल गया। इसके पहले निदेशक-मंडल में 7 निदेशक थे जो इस प्रकार हैं: दयाल सिंह कालेज और ट्रिब्यून के संस्थाशपक सरदार दयाल सिंह मजीठिया, डीएवी कालेज के संस्थापकों में शामिल और उसकी प्रबन्धौ-समिति के अध्यीक्ष लाला लालचंद, विख्यात बगांली वकील काली प्रसोनो रॉय जो वर्ष 1900 में भारतीय राष्ट्रीलय कांग्रेस के लाहौर सत्र में उसकी स्वावगत समिति के अध्यलक्ष भी रहे थे, लाला हरकृष्णष लाल जो पंजाब के पहले उद्योगपति के तौर पर प्रसिद्ध हुए, ईसी जेस्सा,वाला, सुप्रसिद्ध पारसी व्याषपारी और जमशेदजी एंड कं. लाहौर के साझीदार, लाला प्रभु दयाल, मुलतान के जाने-माने रईस, व्यारपारी और परोपकारी, बक्ष्शीौ जयशी राम, लाहौर के प्रसिद्ध दीवानी वकील और लाला ढोलन दास, अमृतसर के सुप्रसिद्ध बैंकर, व्यारपारी और रईस। अतराष्ट्रीय और सार्वभौमिक भावना से ओतप्रोत होकर एक बंगाली, एक पारसी, एक सिख और कुछ हिन्दुओं ने इस बैंक को स्थाौपित किया जो कारोबार हेतु जन-साधारण के लिए 12 अप्रैल, 1985 को खुला। इसके लिए उनमें एक मिशनरी वाला उत्साेह था। सरदार दयाल सिंह मजीठिया इसके प्रथम अध्यक्ष बने जबकि लाला हरकृष्ण लाल बोर्ड के पहले सचिव और श्री बुलाकी राम शास्त्री , लाहौर के बेरिस्टरर इसके प्रबन्धवक नियुक्त किए गए।

मात्र 7 माह के परिचालन के बाद ही 4% के हिसाब से पहले लाभंश की घोषणा की गई। अनारकली, लाहौर के आर्य समाज मंदिर के सामने स्थित इस बैंक में सर्वप्रथम लाला लाजपतराय ने खाता खोला। उनके छोटे भाई ने बैंक में प्रबन्धक के रुप में कार्यग्रहण किया। बैंक की प्राधिकृत कुल पूंजी 2 लाख रुपए और कार्यशील पूंजी 20000 रुपए थी। इसके कुल कर्मचारी संख्याृ 9 और कुल मासिक वेतन 320 रुपए था।

लाहौर से बाहर इसकी पहली शाखा वर्ष 1900 में रावलपिंडी में खोली गई। अपनी स्था्पना के पहले दशक में बैंक ने मंद गति से लेकिन निरन्तर प्रगति की। कुछ समय बाद लाला लाजपतराय निदेशक मंडल में शामिल हो गए। लाला हरकृष्ण लाल द्वारा स्थापित पीपल्सन बैंक ऑफ इंडिया के फेल हो जाने से वर्ष 1913 में भारतीय बैंकिंग उद्योग में भारी संकट उत्पन्न हो गया। इस अवधि के दौरान 78 बैंक फेल हो गए। पंजाब नैशनल बैंक डटा रहा। पंजाब के तत्कालीन वित्तीय आयुक्त श्री जे.एच.मेनार्ड ने कहा---‘’आपका बैंक अस्तित्व में रहा---नि:संदेह अच्छे प्रबन्धनन की वजह से’’। ये शब्दं बैंक प्रबन्धहन में जनता के विश्वास को पर्याप्ता व्येक्ता करते हैं ।

संसार भर में वर्ष 1926 से 36 तक की अवधि बैंकिंग उद्योग के लिए उठा-पटक की और नुकसान देय रही। वर्ष 1929 में वाल स्ट्री ट में आई भारी गिरावट से दुनिया जबरदस्ता आर्थिक संकट में आ गई।

इसी अवधि के दौरान जलियावाला बाग समिति द्वारा बैंक में खाता खोला गया जिसका परिचालन आने वाले दशक में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया। वर्ष 1941 से 1946 तक की पांच वर्ष की अवधि के दौरान अत्य धिक विकास हुआ। आरंभ में मात्र 71 शाखाएं ही थीं जो बढ़कर 278 हो गई । जमाराशियां 10 करोड़ रु. से बढ़कर 62 करोड़ रु. हो गई। 31 मार्च 1947 को बैंक के पदाधिकारियों ने बैंक के पंजीकृत कार्यालय को लाहौर से दिल्ली स्था़नान्तवरित करने का निर्णय किया और इसके लिए उन्होंकने लाहौर उच्‍च न्याखयालय से 20 जून, 1947 को अनुमति ले ली।

इसके बाद पीएनबी स्वा़स्य्ों वर्द्धक सिविल लाइंस, दिल्लीक स्थित श्रीनिवास आहाते में अवस्थित हुआ। बैंक के कई कर्मचारी अपनी ड्यूटी करते हुए उस समय हुए व्यासपक दंगों के शिकार हो गए। स्थिति और भी नाजुक हो गई और बैंक को विवश होकर पश्चिमी पाकिस्तादन स्थित अपने 92 कार्यालय यानी कुल कार्यालयों के 33 प्रतिशत कार्यालय जिनमें कुल जमाराशियों का 40% मौजूद था बंद करने पड़ गए। बहरहाल, बैंक ने अपनी कुछेक केयरटेकर शाखाओं को कायम रखा।

इसके बाद बैंक ने विस्थाकपित खाताधारकों को पुनर्वासित करने का कार्य आरंभ किया। पाकिस्ता न से आए विस्थातपितों को उनके द्वारा जो भी सबूत दिया गया उसके आधार पर उनकी जमाराशि का भुगतान कर दिया गया। इससे उनका बैंक के प्रति विश्वाास और भी पुख्तास हो गया और पीएनबी भरोसे का प्रतीक और विश्वकसनीय बैंक बन गया। फालतु स्टाुफ एक बड़ी समस्या बन गया जिससे तीव्र विस्ता‍र प्राथमिकता हो गई। इस नीति का बहुत फायदा हुआ और इससे व्यायपक विकास के युग का शुभारंभ हुआ।

वर्ष 1951 में बैंक ने भारत बैँक लि. की आस्तियों और देयताओं का अधिग्रहण किया और यह निजी क्षेत्र का दूसरा सबसे बढ़ा बैंक बन गया। वर्ष 1962 में इसने इंडो-कमर्शियल बैंक का बैंक में समामेलन किया। जमाराशियां 1949 में घटकर 43 करोड़ रुपए रह गई थी जो जुलाई, 1969 तक बढ़कर 355 करोड़ रु. तक पहुंच गई। बैंक के कार्यालयों की संख्याथ बढ़कर 569 हो गई और अग्रिम जोकि 1949 में 19 करोड़ रुपए थे इसके राष्ट्री यकरण के समय यानि जुलाई, 1969 तक बढ़कर 243 करोड़ रुपए हो गए थे।

वर्ष 1895 में अपनी स्था्पना के समय से ही पीएनबी ‘’लोगों का बैंक’’ रहा है और सम्पूरर्ण देश में लाखों लोगों की सेवा में जुटा है। इसे बैंक के अन्यस ग्राहकों के साथ- साथ सर्वश्री जवाहर लाल नेहरु, गोबिंद वल्लाभपंत, लाल बहादुर शास्त्रीा, रफी अहमद किदवई, श्रीमती इंदिरा गांधी आदि जैसे महान राष्ट्री य नेताओं की भी सेवा करने का सुअवसर प्राप्तह हुआ है।

पंजाब केसरी लाला लाजपत राय (हमारे संस्थाभपक के व्यवक्तित्वु को नमन)

लाला लाजपत राय का जीवनवृत्त और कार्यकाल

लाला लाजपत राय का जीवनवृत्त और कार्यकाल स्वरतंत्रता प्राप्ति से पहले के ऐसे कुछेक नेता ही हैं जिन्हों ने राजनैतिक क्षेत्र में आने के बाद भी सामाजिक, सांस्कृततिक और शैक्षणिक कार्यों में सक्रिय रुप से भाग लेना जारी रखा। लाला लाजपतराय ऐसे ही नेता थे। पंजाब के फिरोजपुर जिले में स्थित एक छोटे से गांव धुदीके में उनका जन्मऐ 28 जनवरी 1865 को अग्रवाल बनिया परिवार में हुआ और शायद इसीलिए उन्होंनने देश के सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में कार्य करने के साथ-साथ औद्योगिक और वित्तीय मामलों में भी काफी रुचि ली। उनके पिताजी एक सरकारी स्कू ल में फारसी और उर्दू के टीचर थे।

पंजाब विश्वहविद्यालय से विधि में फाइनल परीक्षा पास करने के बाद उन्हों ने 18 वर्ष की आयु में ही 1883 में प्रेक्टिस शुरु कर दी। नैतिक और बौद्धिक पृष्ठस भूमि वाले लाला लाजपतराय ने जहां एक पश्चिमी तर्कयुक्त् एवं व्याैवहारिकता सम्पठन्नम शिक्षा थी वहीं उनमें पूर्वी साहित्यय की धार्मिक पावनता एवं नैतिक उत्थाटन भी था जिसने संस्कृिति के शिखर तक पंहुचा दिया। लाला लाजपतराय ने वैसे तो विकास के हर आन्दोालन में सहयोग दिया और उनमें उसके प्रति सहानुभूति रही लेकिन वे आर्य-समाज से खासतौर पर जुड़े थे और उन्हेंं लगता था कि उसमें देशभक्ति, परोपकार और धार्मिक कार्य करने की व्या पक संभावनाएं हैं।

वकालत की योग्यनता हासिल करने के बाद लाला लाजपतराय ने हिसार में प्रेक्टिस शुरु कर दी और शीघ्र ही जिले के जाने-माने वकील बन गए। उन्हों ने वहां आर्य समाज का संगठन करके उसे दिशा दी। वर्ष 1892 में ये लाहौर में प्रेक्टिस करने लगे जो अपेक्षाकृत बड़ा क्षेत्र था। लाला लाजपतराय जी मानते थे कि राष्ट्रर-विकास में धर्म-निरपेक्ष और धार्मिक दोनों ही प्रकार की शिक्षा महत्वमपूर्ण है । उन्होंरने लाहौर में डीएवी कालेज की स्था पना में सहयोग दिया ।

लालाजी और राजनीति

लाला लाजपतराय का राजनीति में हमेशा से रुझान था। वर्ष 1888 में भारतीय राष्ट्रीमय कांग्रेस की इलाहाबाद में श्री जी यूले की अध्येक्षता में बैठक हुई उस समय लाला जी कांग्रेस में शामिल हो गए। भारतीय राष्ट्री य कांग्रेस ने देखा कि वे एक मितव्य यी, ईमानदार, निस्वा र्थ और कर्त्तव्यि-निष्ठ। कार्यकर्ता हैं और उसने उन्हेंक 1905 में भारतीयों की राजनैतिक शिकायतें अंग्रेजी सरकार के समक्ष रखने के लिए अपने प्रतिनिधि मंडल में शामिल कर लिया। उन्होंतने अपने इस दौरे के सारे खर्च का स्व यं ही वहन किया। उन्होंमने गोखले के साथ इंग्लैंअड के विभिन्नं हिस्सोंय में राजनैतिक अभियान चलाकर अंग्रेजों को भारत में बेरहम और नौकरशाह सरकार द्वारा भारतीयों के साथ किए जा रहे दुर्व्य्व्यावहार की जानकारी दी और उन्हें तथ्य और आंकड़े देते हुए भुखमरी की शिकार भारतीय जनता की स्थिति से शिष्टहतापूर्वक अवगत करवाया। लाला लाजपतराय की बातों से अंग्रेज काफी प्रभावित हुए। इंग्लैंपड से लौटने के बाद वे देश के राजनैतिक रुप से विकास और औद्योगिक स्वभतंत्रता संबंधी कार्यों हेतु योजनाएं बनाने में जुट गए।

निकट भविष्यउ में स्व देशी आंदोलन की शुरुआत हुई और वे उसमें जी-जान से लग गए। उन्हों ने पंजाब के लोगों को स्व देशी से अवगत करवाया और इसे वहां बहुत लोकप्रिय कर दिया। इससे नौकरशाह काफी क्रुद्ध हो गए और अंग्रेजों के साथ-साथ एंग्लोंो-इंडियन प्रैस उन्हेंए क्रान्तिकारी मानने लगी। उन्हेंद खुले आम क्रांतिकारी और सशस्त्रथ सेना को भड़काने वाला कहा जाने लगा।

जलियावाला बाग कांड और सरकार द्वारा अपने अधिकारियों की करतूतों के लिए उनकी निंदा न किए जाने से वे पूर्णरुप से असहयोगी हो गए। उनका अंग्रेजों पर से विश्वाोस उठ गया और वे पूरी तरह असहयोग आन्दोुलन में कूद पड़े। वर्ष 1925 में वे स्वसराज पार्टी में शामिल हो गए। उन्हेंर उसका उप नेता बना दिया गया । उन्होंषने असेम्बमली में होने वाली चर्चाओं में सक्रिय रुप से भाग लेना शुरु कर दिया। साइमेन आयोग को बॉयकॉट करने का प्रस्ता व भी और उन्होंरने ही रखा था। दिनांक 30 अक्टूआबर, 1928 को लाहौर में बॉयकोट जलूस की अगुवाई करते हुए उन्हों।ने अपनी छाती पर लाठियां खाई जिनसे अंतत: 17 नवम्बमर, 1928 को उनका देहांत हो गया।

लाला लाजपतराय और पंजाब नैशनल बैंक

लालाजी इस बात से बहुत व्येथित थे कि भारतीय पूंजी का इस्तेोमाल अंग्रेजी बैंकों और कंपनियों को चलाने में हो रहा है लेकिन सारा मुनाफा अंग्रेजों को मिल रहा है, भारतीयों को अपनी पूंजी पर केवल थोड़े से ब्यालज से ही संतुष्टो होना पड़ रहा है। आर्य समाज के राय मूल राज के मन में काफी समय से यह विचार चल रहा था कि भारतीयों का अपना राष्ट्री य बैंक होना चाहिए और इससे सहमत होते हुए लालाजी ने भी अपने लेख में इसकी आवश्यटकता पर बल दिया। राय मूल राज के कहने पर लाला लाजपतराय ने अपने कुछ चुनिंदा मित्रों को एक परिपत्र प्रेषित करके सही मायनों में स्वजदेशी अभियान के पहले विशेष रचनात्मतक उपाय के रुप में एक भारतीय ज्वाकइंट स्टॉंक बैंक बनाए जाने का आग्रह किया और इसके लिए उत्सातहवर्धक प्रतिक्रिया प्राप्ते हुई। दिनांक 19 मई, 1894 को संस्थाा का ज्ञापन और अंतर्नियम दायर व पंजीकृत करने के बाद बैंक का गठन भारतीय कंपनी अधिनियम (1882 का अधिनियम VI) के तहत किया गया। बैंक का प्रोस्पेनक्टस ट्रिब्यूमन, उर्दू अखवारे आम तथा पैसा अखबार में प्रकाशित हुआ। संस्थाापकों की बैठक 23 मई, 1894 को पीएनबी के पहले अध्यखक्ष श्री दयाल सिंह मजिथिया के लाहौर स्थित निवास स्थाान पर हुई और उन्हों ने योजना पर आगे काम करने का संकल्पा किया। उन्होंाने लाहौर के मशहूर अनारकली बाजार में जाने-माने रामा ब्रदर्स स्टोलर के पास डाकखाने के सामने मकान किराए पर लेने का निर्णय किया। दिनांक 12 अप्रैल, 1895 को यानी पंजाब के प्रसिद्ध बैसाखी त्यो हार से एक दिन पहले बैंक कारोबार के लिए खुल गया। बैंक की संस्कृबति की झलक पहली ही बैठक से मिल गई थी। चौदह मूल शेयर धारकों और सात निदेशकों ने बहुत ही कम संख्याह में शेयर लिए ताकि बैंक का नियंत्रण बहुत बढ़े क्षेत्र में फैले हुए अनेक शेयर धारकों के पास रहे। इस तरह का एकदम पेशावर रवैया न तो उस समय और न आज ही आमतौर पर दिखायी देता है।

 
 
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